Get my banner code or make your own flash banner

रविवार, 9 अगस्त 2009

बुंदेलखंड : विकास कम, राजनीति ज्यादा

बुंदेलखंड : विकास कम, राजनीति ज्यादा


जरा इस तस्वीरों को जरा गौर से देखिए। कुछ याद आया। जी हां ये तस्वीर है बुंदेलखंड की जहां कमोबेश हर साल यही स्थिति देखने को मिलती है जब इस इलाके के किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए इन्द्र भगवान को याद करते हैं।

आज कल बुंदेलखंड सुर्खियों में है। सुर्खियों में इसलिए है क्योंकि बुंदेलखंड के विकास की बातें कम, इस पर राजनीति ज्यादा हो रही है। कैसी राजनीति हो रही है, इस पर प्रकाश डालने से पहले ये जान लेना जरूरी है कि आखिर बुंदेलखंड है क्या चीज और इसका भौगोलिक और आर्थिक महत्व क्या है। बुंदेलखंड को भारत का दिल कहा जाता है। दरअसल बुंदेलखंड कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश और इसका एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश में। पन्ना में हीरे की खानें, खजुराहों के मंदिर, महोबा का पान, चीत्रकूट के घने जंगल, ओरछा के महल और केन, बेतवा और चंबल जैसी नदियां इस इलाके की धरोहर हैं। वेद व्यास, तुलसीदास, आल्हा-ऊदल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर मैथिलीशरण गुप्त और हॉकी के जादूगर या भगवान मेजर ध्यानचंद तक कितनी ही शख्सीयतों की जन्मस्थली यही क्षेत्र है। सभी मायनों में अनूठा ये इलाका आर्थिक मामलों में बेहद ही पिछड़ा हुआ हुआ है।


मौजूदा समय में करीब 5 करोड़ की जनसंख्या वाले इस इलाके को अलग राज्य बनाने की मांग लगभग 5 दशकों से चली आ रही है। इस अलग राज्य में यूपी के झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट और मध्य प्रदेश के दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर, पन्ना, दमोह और सागर जिलों को शामिल करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा कई बार मध्य प्रदेश के मुरैना, शिवपूरी, भिंड, ग्वालियर, शिवपुर, गुना और अशोकनगर को भी शामिल करने की मांग उठती रही है।

बात हो रही थी बुंदेलखंड सुर्खियों में रहने की। दरअसल कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के एजेंडे में बुंदेलखंड के विकास का एजेंडा काफी समय से रहा है। इसी के मद्देनजर उन्होंने पिछले साल का दौरा करने के बाद इस क्षेत्र के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग की थी। इस क्षेत्र के विकास लिए ही पिछले महीने राहुल गांधी प्रधानमंत्री से मिलकर बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण बनाने की मांग की। फिर क्या था यूपी और मध्य प्रदेश के सत्तारूढ़ दलों को राहुल का प्रस्ताव नगवार गुजरी यूपी में बहुजन समाज पार्टी और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है। जाहिर सी बात है कि यहां राजनीति के नफा-नुकसान की बात तो आनी ही थी, इसलिए इनके प्रतिनिधियों ने लोक सभा में हंगामा मचाया और कहा कि केन्द्र सरकार संघीय ढांचे से छेड़छाड़ कर रही है। यहां राहुल ने बुंदेलखंड के विकास की बात तो सोची, लेकिन इनके पीछे भी दूरगामी राजनीतिक रणनीति है। रणनीति इसलिए भी की कांग्रेस का जनाधार इन दोनों राज्यों में बहुत ही कम है। हालांकि गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को थोड़ी उम्मीद दोनों राज्यों बढ़ी है। इसलिए कांगेस एक दूरगामी रणनीति पर आगे बढ़ रही है।

गौरतलब है कि यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने बुंदेलखंड के सर्वांगीण विकास के लिए केन्द्र सरकार से 9 हजार करोड़ रूपए की मांग की थी, लेकिन केन्द्र सरकार ने नहीं दिया। जहां तक मध्य प्रदेश की सरकार प्रश्न है तो दो साल पहले ही बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण बना चुकी है, लेकिन केन्द्र सरकार इसको आर्थिक मदद देने के बजाय नया प्राधिकरण बनाने की बात कर रही है, जो दोनों राज्यों के सत्तारूढ़ दलों को नागवार गुजर रही है। हो भी क्यों नहीं आखिर वोट बैंक का सवाल है भाई। जब बुंदेलखंड का विकास हो ही जाएगा तो फिर ये मुद्दा ही मर जाएगा। इसलिए सभी लोग, चाहे किसी भी पार्टी का क्यों न हो वे नहीं चाहते हैं कि बुंदेलखंड का विकास हो। बुंदेलखंड पर कुछ हो तो राजनीति और सिर्फ राजनीति। विकास की बातें कम राजनीति ज्यादा। जब तक राजनीतिज्ञों में इच्छाशक्ति नहीं होगी तब तक इस खंड मतलब बुंदेलखंड का विकास संभव नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: