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सोमवार, 12 नवंबर 2007

खिला रहेगा कमल.........................?
आखिरकार दक्षिण में कमल खिल ही गया। बीजेपी के लिए बहुत ही ऐतिहासिक क्षण था। हो भी क्यों न आखिर दक्षिण के किसी भी राज्य में बीजेपी को अपना कदम जमाने का मौका जो मिला।

येदियुरप्पा किसी दक्षिण भारतीय राज्य में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं । भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. इसी के साथ पहली बार किसी दक्षिण भारतीय राज्य का मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी का नेता बना है. पिछले कुछ हफ़्तों से चले आ रहे राजनीतिक संकट के बाद राज्य में पिछले 34 दिनों से चला आ रहा राष्ट्रपति शासन भी समाप्त हो गया.

कुमारास्वामी के बाद येदियुरप्पा कर्नाटक के 25वें मुख्यमंत्री हैं. भाजपा किसी दक्षिण भारतीय राज्य
में पहली बार सरकार बनाने में सफल रही है.
काफी जद्दोजहद के बाद सरकार बनाने का मौका मिला था। इसलिए पार्टी के सभी आला नेता इस अवसर को गंवाना नहीं चाहते थे। इसलिए इस ऐतिहासिक मौक़े पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, एम वेंकैया नायडू और अनंत कुमार भी मौजूद थे.


इस क्षण का गवाह तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी भी बनना चाहते थे, लेकिन उनका साथ उसके स्वास्थ्य ने नहीं दिया। इसलिए अटल जी दिल्ली से ही सिर्फ बधाई देकर ही संतुष्ट करना पड़ा।

गौरतलब है कि बीजेपी-जेडीएस के बीच 20-20 फार्मूला के तहल राज्य में सरकार चलाने की बात तय थी। लेकिन 20 महीने पूरा करने के बाद सत्ता हस्तानांतरण
नहीं होने के कारण दोनों के बीच गतिरोध पैदा हो गयी थी।
लेकिन यहां ये सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या बीजेपी कर्नाटक में विधानसभा के बचे बाकी कार्यकाल पूरा कर पाएगी ? क्या कमल 20 महीने तक खिला रहेगा। स्थिरता के सवाल पर जानकारों का मानना है कि भले ही कर्नाटक में जेडीएस और भाजपा के बीच बना गतिरोध ख़त्म हो गया दिखता हो पर अभी भी जोड़-जुगत का दौर थमा नहीं है. ऐसे में नहीं लगता कि बीजेपी-जेडीएस के बीच जो 20-20 नीति अपनाई गई है, वह सफल साबित होगी। ऐसे में अगर हालातों पर नज़र डाले तो ज्यादा आसार कमल के कुंभ्हलाने की है। बीते दिनों की गतिरोधों पर गौर किया जाय तो जो बात सामने आती है, वह है कि सरकार पर अस्थिरता के बादल छाए रहेंगे।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

हमला लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर…............


एक एक पत्रकार विधायक के पास एक लड़की की हत्या के मुद्दे की तहकीकात करने पहुंचते हैं। लेकिन विधायक सवालों की जबाव देने के बजाय पत्रकारों को बंधक लेते हैं।
पत्रकारों को बुरी तरह मारा जाता है।
एक की हाथ तोड़ दी जाती है। जान से मारने की धमकी दी जाती है। मुख्यमंत्री के आदेश पर दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है। जेल से ही पत्रकारों को जान मारने की धमकी देता है।
ये कोई फिल्मी फसाना नहीं है, बल्कि ये घटना बिहार की राजधानी पटना में हुई। जहां लोकतंत्र पर हमला कर सत्य को उजागर करने वाले पत्रकारों को ख़बरों की तह तक जाने से रोका जाता है। रेशमा नामक लड़की की रहस्यमय हत्या के बाद एक चिठ्ठी में विधायक का नाम सामने आया था, इसी संबंध में एनडीटीवी के पत्रकार और कैमरामैन जब बाहुबली विधायक अनंत सिंह के पास पहुंचे तो विधायक भड़क उठे और पत्रकारों को मारने के लिए अपने गुर्गे को आदेश दे दिया। गौरतलब है कि विधायक अनंत सिंह पर हत्या, डकैती, बलात्कार के सैंकड़ों मामले दर्ज हैं। फिर तो पत्रकारों पर अपना रौब दिखाना लाज़िमी था।

ये पहला मौका नहीं जब पत्रकारों को सत्य लिखने-दिखाने से डराया धमकाया जाता रहा हो। अभी हाल में ही मिड-डे के पत्रकारों पर न्यायालय द्वारा अवमानना का आरोप लगाया गया था। इसके विरोध में देश-भर में प्रदर्शन हुआ था।
बिहार के ही भागलपुर जिले में भी चौथे स्तंभ की गला घोटने की कोशिश की गई थी। 2002 में दैनिक हिन्दुस्तान के एक पत्रकार को मारकर गंगा किनारे बालू में दबा दिया गया था। लेकिन पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए उस पत्रकार को मौत की मुंह से बाहर निकाला था।

पत्रकारों को सत्य लिखने से बार-बार रोका गया है और भविष्य में भी रोका जाएगा। हद तो तब हो जाती है जब समाज के नीति-निर्धारक ही सत्य लिखने वालों की गला घोंटते नज़र आते हैं। न जाने किलने ही अनंत सिंह हैं जो लोकतंत्र की गला घोंटने पर आमादा हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगना ही चाहिए। अन्याथा पटना में जो वारदातें हुईं, वो फिर हो सकती है।

अगर इसी तरह से पत्रकारों पर बार-बार हमला होता रहा, तो समाज का क्या होगा। कौन सत्य और भ्रष्टाचार को सामने लाएगा। ऐसे तत्वों पर रोक लगाना अति आवश्यक जो इन घटनाओं को बढ़ावा देने से बाज नहीं आते। लोकतंत्र की हत्या करने वालों पर अंकुश कैसे लगे, इस पर भी समाज को सोचना होगा।
इस मौके का फायदा उठाने से राजनीतिक दल भला कहां चुकने वाले थे। यहां तो उन्हें बैठे-बिठाए हाथ में राजनीति की रोटी सेंकने के लिए तगड़ा मौका जो मिल गया। इसका भरपूर फायदा सभी विपक्षी पार्टियों ने जमकर उठाया और पूरे राज्य में चक्का जाम किया।