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शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

मेरा सवाल मनसे हैं.........................................

मेरा सवाल मनसे हैं..............



सवाल चुँकि मनसे है, इसलिए मैं महाराष्ट्र के उन तमाम नेताओं से पूछना चाहता हूँ, जो आज-कल क्षेत्रवाद के नाम पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं और गाहे-बगाहे क्षेत्रवाद के नाम पर खून-खराबे पर उतर आते हैं। बार-बार ये सवाल उठते रहे हैं कि महाराष्ट्र में यूपी-बिहार के लोग आकर यहां के लोगों का हक मार रहे हैं। मैं इन नेताओं से पूछना चाहता हूँ कि महाराष्ट्र में यूपी-बिहार के लोग वहां पर छोटे-छोटे काम क्यों करते हैं। क्या यहां के लोग वहां के लोगों से जबर्दस्ती काम छीन लेते हैं या वहां के आदमी वो काम नहीं करना चाहते हैं, जो यूपी-बिहार के लोग करते हैं। इन दिनों कुछ नेताओं को ये कहते हुए सुना गया कि छोटे-छोटे कामों के लिए मेहनताना कम दी जाती है। तो गलती किसकी है? अगर मेहनताना कम मिलती है, तो क्या ये गलती उत्तर भारतीयों की है। अगर ये नेता मराठियों के इतने हिमाती हैं तो क्यों नहीं वहां के काम देने वालों को मारते हैं। उनकी ये भी दलील है कि उत्तर भारत के लोग यहां आकर मजदूरी का रेट गिरा देते हैं। अगर मजदूरी कम मिलती है, तो इसमें उत्तर भारतीयों की गलती कहां है। क्यों नहीं वहां के लोग ही टैक्सी चलाते हैं। क्यों नहीं धोबी का काम करते हैं। क्यों नहीं पानी-पुरी बेचते हैं। क्यों नहीं निर्माण के क्षेत्र में मजदूरी का काम करते हैँ।


अगर महाराष्ट्र के लोग ये सभी काम करने लगे तो यहां के लोग क्यों वहां जाएंगे। जब वहां काम ही नहीं मिलेगा तो ये लोग क्यों वहां जाएंगे। क्या ये लोग मराठियों से जबर्दस्ती काम छीनते हैं। नहीं ना। तो फिर हाय तौबा क्यो ? आखिर खून-खराबा इसलिए कि अपनी रोटी चलती रहे और छोटी सी राजनीतिक लाभ के लिए देश को भाषा और क्षेत्र के नाम पर टुकड़ों मं बांट दिया जाय। पहले ये नेता अपने गिरेबान झाकें और फिर सोंचे कि आखिर हम आने वाली पीढ़ी को देना क्या चाहते हैं। आपसी भाईचारा का संदेश या क्षेत्रवाद और अलगाववाद का दंश......................................

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अपनी रोटी सेंक रहे हैं ये.

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.