

पिछले वर्ष मेडिकल
पत्रिका लांसेट की रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि पिछले बीस सालों में भारत में जन्म से पहले ही करीब एक करोड़ लड़कियों की भ्रूण हत्या हुई होगी. टेस्ट के ज़रिए अजन्मे बच्चे का लिंग निर्धारण करना ब्रिटेन और भारत में अवैध है. 

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के मुताबिक़ भारत में हर वर्ष साढ़े सात लाख कन्याओं को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है।
मैं जहां रहता हूं, उसी फ्लोर पर सामने वाली रूम में एक किरायेदार रहता है। वह शादीशुदा है और उसे एक बेटी है। उसकी पत्नी गर्भवती थी। पति काफी चिंता में डूबा रहता था कि इसबार बेटा पैदा होगा या बेटी। उसके घर जो भी उससे मिलने आता, सबसे बस एक ही बात कहता कि भगवान करे कि इसबार बेटा ही हो। एक दिन मकान मालिक रूम का किराया मांगने आया, तो वह काफी गिरगिराने लगा कि किराया अभी नहीं दे सकता कुछ दिनों के बाद देंगे। उसकी पत्नी की हालत के देखकर मकान मालिक मान गया। उसके बाद उसने मकान मालिक से इजाजत मांगी कि अगर बेटा हुआ तो क्या मैं यहां हवन करवा सकता हूं। मकान मालिक ने इजाजत दे दी। उसने मकान मालिक से कहा कि वह भी आशीर्वाद दें कि बेटा ही पैदा हो। अगर बेटा हुआ तो ऑपरेशन करवा देंगे। इस पर मकान मालिक ने कहा ऑपरेशन क्यूं करवाएगा। तो वह बोला इतने लोगों को खिलाएगा कौन?वह दो दिनों से काफी चिंतित था। मानो वो सबकुछ लुटा चुका हो। आखिर वह दिन आ ही गया, जिस दिन का उसे इंतज़ार था। वह फिर से दूसरे बच्चे बाप बना था। इसबार उसकी मुराद पूरी हो चुकी थी। क्योंकि इसबार उसे बेटा पैदा हुआ था। वह अब काफी राहत महशूस रहा था। बच्चो की तरह चहक-चहक कर सबको बता रहा था कि बेटा हुआ है। मैं ब्रश कर था कि वह अपने रूम से बाहर आया और सीना चौड़ा कर बोला कि भाई बेटा हुआ है। ऐसा चहक रहा था मानो किला फतह कर लिया हो। उसका तो खुशी का ठिकाना नहीं था। वह इतना उत्तेजीत था कि ठीक से मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। काफी खुश था वह। होता भी क्यों नही, आखिर बेटा जो पैदा हुआ था। बुढ़ापे की लाठी जो प्राप्त कर लिया था।
मैं ब्रश करने के बाद जैसे ही टीवी ऑन किया तो एक चैनल पर एक ख़बर आ रही थी। ख़बर ये थी कि तीन बेटों ने अपने बूढ़े माता-पिता को घर से बाहर निकाल दिया था। मैं अचंभित था। अचंभित इसलिए था, क्योंकि एक दिन पहले ही लोकसभा में एक बिल पारित हुआ था, जिसमें प्रावधान है कि कोई भी अपने माता-पिता को घर से बाहर नहीं निकाल सकता, इसके लिए बाध्य किया गया है।
आखिर हमारे समाज में हो क्या रहा है ? समाज आखिर जा किधर रहा है। एक ओर तो लोग बेटे की चाह में लड़कियों को दुनिया में आने से पहले ही गर्भ में मार रहे हैं। बेटे ही पैदा हो इसके लिए क्या-क्या नहीं करते। डॉक्टरी ईलाज से लेकर दुआएं-मन्नत तमाम चीजों का सहारा ली जाती है। वही दूसरी ओर जिस बेटे के लिए लोग सब-कुछ बर्बाद कर देते हैं। वही बेटा एक दिन अपने माता-पिता को घर में रखने के बजाय घर से बाहर निकाल देते हैं। बेटे के जन्म लेते ही घर में खुशी की लहर पैदा हो जाती है और बेटी के पैदा होने पर मातम। माता-पिता को बुढ़ापे में जिस बेटे के सहारे की आस रहती है. वही धोका दे जाता है।


भ्रूण हत्या घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। लोग अपने बेटे की शादी के लिए तो सुन्दर लड़कियों की तलाश जरूर करते हैं, तो फिर क्यों बेटी को जन्म लेने से पहले ही लोगों की भृकुटी तन जाती है।
न जाने क्यों लोग इतना सब जानने के बावजूद बेटी को अहमियत देने के बजाय बेटे को ही ज्यादा अहमियत क्यों देते है ?. दोनों को बराबर क्यों नहीं मानते ?. दोनों को बराबर का ह़क क्यों नहीं देते ?. लोग बेटी को बेटे से कम क्यों ऑंकते है ?. क्या बेटी अपने मॉं-बाप की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं ?. तो फिर दोनों के बीच ऐसा भेदभाव क्यों ?????.
2 टिप्पणियां:
it is true and it is happing in our socity. but it is not only the fault of are socity but also it is are system that they do so.
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