

पत्रकारों को बुरी तरह मारा जाता है।
एक की हाथ तोड़ दी जाती है। जान से मारने की धमकी दी जाती है। मुख्यमंत्री के आदेश पर दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है। जेल से ही पत्रकारों को जान मारने की धमकी देता है।


ये कोई फिल्मी फसाना नहीं है, बल्कि ये घटना बिहार की राजधानी पटना में हुई। जहां लोकतंत्र पर हमला कर सत्य को उजागर करने वाले पत्रकारों को ख़बरों की तह तक जाने से रोका जाता है। रेशमा नामक लड़की की रहस्यमय हत्या के बाद एक चिठ्ठी में विधायक का नाम सामने आया था, इसी संबंध में एनडीटीवी के पत्रकार और कैमरामैन जब बाहुबली विधायक अनंत सिंह के पास पहुंचे तो विधायक भड़क उठे और पत्रकारों को मारने के लिए अपने गुर्गे को आदेश दे दिया। गौरतलब है कि विधायक अनंत सिंह पर हत्या, डकैती, बलात्कार के सैंकड़ों मामले दर्ज हैं। फिर तो पत्रकारों पर अपना रौब दिखाना लाज़िमी था।
ये पहला मौका नहीं जब पत्रकारों को सत्य लिखने-दिखाने से डराया धमकाया जाता रहा हो। अभी हाल में ही मिड-डे के पत्रकारों पर न्यायालय द्वारा अवमानना का आरोप लगाया गया था। इसके विरोध में देश-भर में प्रदर्शन हुआ था।
बिहार के ही भागलपुर जिले में भी चौथे स्तंभ की गला घोटने की कोशिश की गई थी। 2002 में दैनिक हिन्दुस्तान के एक पत्रकार को मारकर गंगा किनारे बालू में दबा दिया गया था। लेकिन पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए उस पत्रकार को मौत की मुंह से बाहर निकाला था।
पत्रकारों को सत्य लिखने से बार-बार रोका गया है और भविष्य में भी रोका जाएगा। हद तो तब हो जाती है जब समाज के नीति-निर्धारक ही सत्य लिखने वालों की गला घोंटते नज़र आते हैं। न जाने किलने ही अनंत सिंह हैं जो लोकतंत्र की गला घोंटने पर आमादा हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगना ही चाहिए। अन्याथा पटना में जो वारदातें हुईं, वो फिर हो सकती है।
अगर इसी तरह से पत्रकारों पर बार-बार हमला होता रहा, तो समाज का क्या होगा। कौन सत्य और भ्रष्टाचार को सामने लाएगा। ऐसे तत्वों पर रोक लगाना अति आवश्यक जो इन घटनाओं को बढ़ावा देने से बाज नहीं आते। लोकतंत्र की हत्या करने वालों पर अंकुश कैसे लगे, इस पर भी समाज को सोचना होगा।
ये पहला मौका नहीं जब पत्रकारों को सत्य लिखने-दिखाने से डराया धमकाया जाता रहा हो। अभी हाल में ही मिड-डे के पत्रकारों पर न्यायालय द्वारा अवमानना का आरोप लगाया गया था। इसके विरोध में देश-भर में प्रदर्शन हुआ था।
बिहार के ही भागलपुर जिले में भी चौथे स्तंभ की गला घोटने की कोशिश की गई थी। 2002 में दैनिक हिन्दुस्तान के एक पत्रकार को मारकर गंगा किनारे बालू में दबा दिया गया था। लेकिन पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए उस पत्रकार को मौत की मुंह से बाहर निकाला था।
पत्रकारों को सत्य लिखने से बार-बार रोका गया है और भविष्य में भी रोका जाएगा। हद तो तब हो जाती है जब समाज के नीति-निर्धारक ही सत्य लिखने वालों की गला घोंटते नज़र आते हैं। न जाने किलने ही अनंत सिंह हैं जो लोकतंत्र की गला घोंटने पर आमादा हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगना ही चाहिए। अन्याथा पटना में जो वारदातें हुईं, वो फिर हो सकती है।
अगर इसी तरह से पत्रकारों पर बार-बार हमला होता रहा, तो समाज का क्या होगा। कौन सत्य और भ्रष्टाचार को सामने लाएगा। ऐसे तत्वों पर रोक लगाना अति आवश्यक जो इन घटनाओं को बढ़ावा देने से बाज नहीं आते। लोकतंत्र की हत्या करने वालों पर अंकुश कैसे लगे, इस पर भी समाज को सोचना होगा।
इस मौके का फायदा उठाने से राजनीतिक दल भला कहां चुकने वाले थे। यहां तो उन्हें बैठे-बिठाए हाथ में राजनीति की रोटी सेंकने के लिए तगड़ा मौका जो मिल गया। इसका भरपूर फायदा सभी विपक्षी पार्टियों ने जमकर उठाया और पूरे राज्य में चक्का जाम किया।
2 टिप्पणियां:
सचित्र जानकारी के लिए धन्यवाद।
धन्यवाद परमजीत जी...............ऐसे पढ़ते रहिए और अपनी टिप्पणियां भेजते रहे और अगर आपका मन भी www.chouraha.blogspot.com में लिखने का करे तो बेहिचक अपना लेख मुझे tapan.niraj@gmail.com पर भेंजे..................
तपन कुमार नीरज
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