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गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

हम तो ऐसे हैं भैया............................


भारत विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर है। आर्थिक विकास दर लगातार बढ़ रहा है। इंडिया गुड फील कर रहा है। परमाणु शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। खाद्दान के मामले में आत्मनिर्भर हो चुका है। लेकिन इन सब के बावजूद एक क्षेत्र में भारत बेहद पिछड़ा हुआ है, वह है ग़रीबी। 2007 के ताजा आंकड़े के मुताबिक भारत में कुल गरीबों की संख्या 220.1 मिलियन है, जिसमें ग्रामिणों की संख्या 170.5 मिलियन और शहरी की संख्या 49.6 मिलियन है।
लेकिन इसके बावजूद भारत में हाल के दिनों में चारों तरफ जिधर देखो चक दे इंडिया की धूम मची है। शाहरूख खान अभिनीत फिल्म पर्दे पर क्या आयी चारों तरफ "चक दे इंडिया" की धूम मच गई। ऐसे में जमशेदपुर में कचड़े से पटे इस सड़क पर इन बच्चों का मन भी चक दे इंडिया करने के लिए मचल उठा। मचले भी क्यों न आखिर 20-20 के वर्ल्ड कप में टीम इंडिया चक जो दिया। सो इन बच्चों का मन भी चक दे इंडिया करने के लिए मचलना स्वाभाविक था। लेकिन चक दे करने के लिए तो साजो-सामान होना चाहिए ना। लेकिन इन बच्चों के पास खेलने के लिए न तो बॉल था और न ही बल्ला, तो चक दे इंडिया कैसे किया जाता। ये बच्चें खेलने के लिए कुछ खरीद नहीं सकते। इसलिए इन बच्चों ने सड़क पर बोरी में बच्चों को बैठा कर चक दे इंडिया किया। इन बच्चों खेल को देख कर हाल-फिलहाल रिलीज हुई फिल्म "लगा चुनरी में दाग" के एक गाने .....हम तो ऐसे हैं भैया......... की याद ताजी हो गई।
सड़क पर ऐसे खेलते बच्चों पर ये गाने एकदम सटीक बैठती है। आखिर इसमें इन बच्चों का क्या दोष.........................आखिर ये बच्चे तो ऐसे ही हैं।

1 टिप्पणी:

अनामिका ने कहा…

Nanhe-nanhe abhavgrast bachho kii sateek tasveer kheenchi hai apne. bachhe abhaavo mein bhi apne khel ke sadhan dhoondh hi lete hai aur saath hi kush rehne ka jariya bhi.